बस्तर संभाग आयुक्त श्यामलाल धावड़े को सर्व आदिवासी समाज ने दी विदाई
27/07/2024 3:47 PM
Hari singh Thakur
बस्तर संभाग आयुक्त श्यामलाल धावड़े को सर्व आदिवासी समाज ने दी विदाई
श्याम धावडे संभाग आयुक्त रहते हुए बस्तर की संस्कृति रीति रिवाज संरक्षण संवर्धन करने में बहुत बड़ा योगदान रहा आदिवासी समाज हमेशा याद करेगी
जगदलपुर :- (हरिहरबस्तर.com)बस्तर संभाग आयुक्त तिरुमाल श्यामलाल धावड़े को सर्व आदिवासी समाज बस्तर संभाग के बस्तर, कांकेर, कोंडागांव, नारायणपुर, दंतेवाड़ा, सुकमा एवं बीजापुर जिले के सभी समाज प्रमुखो,अधिकारी , कर्मचारी के उपस्थिति में जगदलपुर मुरिया सदन धरमपुरा में विदाई सह सम्मान समारोह कार्यक्रम आयोजित किया गया। इस विदाई सह सम्मान समारोह में सर्व आदिवासी समाज बस्तर संभाग पदाधिकारियों एवं संभाग के समस्त समाज प्रमुखों, कर्मचारियों और युवाओं द्वारा निवर्तमान संभाग आयुक्त श्यामलाल धावड़े को सह सम्मान के विदाई समारोह में आदिवासी समाज का सबसे बड़ा चिन्ह गौर मुकुट, बस्तर आर्ट व, पुष्प गुच्छ से सम्मान किया गया उनके नये पद पर जाने से समाज बधाई देते हुए उनके उज्जवल भविष्य का कामना किया। उनके कार्यकाल में किए गए कार्यों का सहराना करते हुए बस्तर समाज के लिए किए गए कार्यों के लिए बधाई देते हुए सह सम्मान विदाई दी गई। बस्तर संभाग अध्यक्ष प्रकाश ठाकुर ने कहा कि सफल कार्यकाल के दौरान किए गए कार्य को सराहना करते हुए बस्तर क्षेत्र आदिवासी विकास प्राधिकरण के पश्चात आदिवासीयों के विरासत एवं संस्कृति के संरक्षण संवर्धन तथा विकास मूलक कार्यो के साथ आदिवासीयों के हित में महत्वपूर्ण कार्य किए वन अधिकार पत्रक भुइयां के माध्यम से सत प्रतिशत राजस्व अभिलेखों में दर्ज करवायें सामुदायिक वन अधिकार एवं सामुदायिक वनसंसाधन अधिकार को संरक्षित करवायें देव गुड़ी माता गुड़ी घोटूल के सेवा अर्जी स्थलों को उनके नाम से राजस्व अभिलेखों में दर्ज किए प्राचिन स्थलों की भूमि को संरक्षित कर राजस्व अभिलेखों में दर्ज करवायें साथ-साथ ही,देव गुड़ी माता गुड़ी घोटूल ,पेन गुड़ी, सेवा अर्जी स्थल प्राचीन स्थल स्मार्क स्थलों का जीर्णोधार करवाया गया और संरक्षित करवाया गया है। धावड़े साहब के द्वारा बस्तर संभाग के अंतर्गत, स्थानीय भर्ती तृतीय व चतुर्थ श्रेणी के 1751 कर्मचारियों का नियुक्ति आदेश जारी किए बस्तर क्षेत्र आदिवासी विकास प्राधिकरण मद के अन्तर्गत बस्तर के ऐतिहासिक एवं संस्कृति धरवर कों संरक्षित करने के साथ ही नेट के माध्यम सर्व सुलभ करवाया बस्तर संभाग के सभी जिलों के शहिदों के नाम से प्रतिमा स्थापना एवं विद्यालय, महाविघालयो का नाम कारण कर आदिवासीयों के आस्था विरासत के संरक्षण संवर्धन एवं परिक्षण करने के लिए बस्तर अंचल के माहन वीर सपूतों एवं विरोगनाओ के स्मृतियों को जिवित बनाए रखने के लिए प्रतिमा का स्थापना किया गया। धावड़े सर के अथक प्रयास से प्राचीन बस्तर एवं आदिवासीयों से सम्बंधित सभी प्रकार के ग्रंथ पुस्तकालय इतिहास, संस्कृति पर्यटन रीति रिवाज , सामाजिक ताना-बाना , देव गुड़ी, माता गुड़ी घोटूल, पेन गुड़ी, सेवा अर्जी स्थल एवं प्राचीन मृतक स्मारकों से सम्बंधित पुस्तिका पुरखती कागजात बस्तर के ऐतिहासिक आंदोलन से सम्बंधित पुस्तकों का संकलन कर ग्रंथलाय का स्थापना किया । जहां विद्यार्थियों जहां शोध तथा अध्ययन कर सकते हैं।
कार्यक्रम का संचालन तुलसी ठाकुर ने कहा कि समय बदलता गया, और अब ऐसा समय आया की सरकार को मजबूर होना पड़ा। 2006 में भारत की संसद में जो कानून लाया गया, वह आदिवासी एवं अन्य परम्परागत लोगों के लिए जंगलों में प्रबंधन एवं संरक्षण, उनके संवर्धन कार्य योजनाएं तैयार करने के लिए गांव के पारंपरिक CFR (सी एफ आर) सीमाओं के अंदर आने वाली जंगल जमीन भूमि के संरक्षण और CFR वन प्रबंधन के दस्तावेज तैयार करने में सफल प्रयास हुआ। यह बस्तर संभाग आयुक्त के दायित्व एवं मार्गदर्शन में हुआ।
प्रखर वक्ता अश्विनी कांगे ने कहा कि संवैधानिक रूप से बस्तर संभाग 5वीं अनुसूची क्षेत्र में आता है। भारत का संविधान अधिकार देता है कि यह 5वीं अनुसूची क्षेत्र है, लेकिन प्रशासनिक तौर पर इसे सामान्य क्षेत्र के नजरिए से चलाया जाता था। संविधान में इसकी अलग व्याख्या और व्यवस्था दी गई है।
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आयुक्त बस्तर संभाग श्यामलाल धावड़े सर ने उद्बोधन करते हुए सबसे पहले सेवा जोहार, जय सेवा, जय बुढ़ा देव कहा। उन्होंने बताया कि उन्हें लगभग ढाई साल (24-01-2022 से) बस्तर में कार्य करने का अवसर प्राप्त हुआ और समाज जागरूक है। उन्होंने गर्व महसूस करते हुए कहा कि हमारा समाज जितना सशक्त, मजबूत, जागरूक और पढ़ा-लिखा होगा, उतना ही हमारा समाज विकास करेगा। आदिवासी समाज की अलग पहचान, सभ्यता, रीति-रिवाज है। जल, जंगल, जमीन के लिए संघर्ष महत्वपूर्ण है। बस्तर क्षेत्र आदिवासी विकास प्राधिकरण के माध्यम से हमने एक छोटा सा प्रयास किया। हमारे बैंगा, गुनिया, सिराहा, मांझी, चालकी, पेरमा, पुजारी, पटेल की परंपराओं को एक लिखिबद्ध दस्तावेज तैयार किया और एक पुस्तक तैयार की। मेरा अनुरोध है कि सभी अपने घर परिवार में इस पुस्तक को रखें ताकि बच्चे अच्छे से पढ़ सकें। पुस्तक में देवी-देवता, गांव के पारंपरिक देवी-देवता, बस्तर संभाग के सातों जिलों में होने वाले मड़ई, मेला, जतरा आदि का वर्णन है। क्रांतिकारी योद्धाओं का भी उल्लेख है। मुझे गर्व है कि हमने यह इतिहास दर्ज किया।
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मुरिया समाज के संभागीय अध्यक्ष जगदीश मौर्य ने समापन करते हुए कहा कि हम आदिवासी पिछड़े हैं और प्रशासन के साथ मिलकर आगे बढ़ने के लिए तत्पर हैं। बस्तर संभाग को आगे बढ़ाने के लिए कार्य करने पर उन्होंने आभार व्यक्त किया। समाज के रीति-रिवाज, भाषा, बोली, खान-पान, रहन-सहन और संरक्षण के लिए तहे दिल से आभारी रहेंगे। इस दौरान प्रकाश ठाकुर, सामु मौर्य, हिडमो मंडावी, गोपाल भारद्वाज, अश्विनी कांगे, बलदेव मौर्य, गांग नाग, पप्पू नाग, शारदा कश्यप, तुलसी ठाकुर, संतु मौर्य, संतोष उसेंडी, धीरज राणा, एम के राणा, नीरज कुंजाम, महेंद्र उसेंडी, नरेश मरकाम, हिडमो वट्टी, पांडु वट्टी,लक्ष्मी नाथ कश्यप, रूपचंद नाग, लखेश्वर कश्यप, बंसी मौर्य, सुखदेव बघेल, पुलसिंग नाग, सोमारु बघेल, अभय कच्छ, कमल नाग, कमलेश कश्यप, सुमित पोयाम, पूरन सिंह कश्यप, हरिश मुचाकी, बसंत कश्यप, संदीप सलाम, जगु तेलामी ,लच्छु नाग,साधु मंडावी, सिता राम मांझी,लंबूधर बघेल, पदम कश्यप, अमिर कश्यप, महादेव, सोभा, प्रकाश आजाद,बामदेव भारती एवं बस्तर संभाग के सभी समाज प्रमुखो अधिकारी – कर्मचारी उपस्थित थे